
(Sawan) सावन माह का महत्व और विवरण
सावन का महीना हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास कहलाता है और यह भगवान शिव की आराधना के लिए विशेष रूप से समर्पित होता है। यह मास वर्षा ऋतु के बीच आता है, जब प्रकृति अपनी पूरी सुंदरता के साथ खिल उठती है। पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाते हैं, नदियाँ उफान पर होती हैं, और वातावरण में एक विशेष प्रकार की ताजगी और शांति का अनुभव होता है।
धार्मिक दृष्टि से सावन का माह अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। इस समय भक्तजन व्रत रखते हैं, विशेष रूप से सोमवार के दिन शिव उपासना करते हैं। महिलाएँ सौभाग्य की प्राप्ति हेतु व्रत करती हैं, झूला झूलती हैं और मेहंदी लगाकर त्यौहारों की तैयारी करती हैं। कांवड़ यात्रा का आयोजन भी इसी माह में होता है, जिसमें श्रद्धालु दूर-दूर से गंगा जल लाकर भगवान शिव को अर्पित करते हैं। यह माह भक्तिभाव, संयम और सेवा का प्रतीक है।
सावन केवल धार्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह वह समय है जब लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, लोक गीत गाते हैं और पारंपरिक उत्सवों में भाग लेते हैं। सावन के गीत, झूले और मेले इस माह की पहचान हैं, जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में समान रूप से मनाए जाते हैं।
सावन (Sawan) कब से कब तक होता है?
शुरुआत: 11 जुलाई 2025 (शुक्रवार)
समाप्ति: 9 अगस्त 2025 (शनिवार) ShivaSeva.comWikipedia+12The Indian Express+12Indiatimes+12
इस तारीखों के दौरान सावन माह शुरू होकर पूर्णिमा या कृष्ण पक्ष की अमावस्या से समाप्त होता है।
सावन (Sawan) के दौरान क्या-क्या होता है?
धार्मिक अनुष्ठान व व्रत
सावन सोमवार: इस माह के हर सोमवार को भगवान शिव की विशेष पूजा होती है।
भक्त उपवास रखते हैं।
शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं, बेल पत्र अर्पित करते हैं।
सावन सोमवार की पूजा विशेष फलदायिनी मानी जाती है।
रुद्राभिषेक: शिवलिंग की पंचामृत, बेलपत्र, जल, धतूरा आदि से अभिषेक किया जाता है।
हनुमत व्रत: कुछ स्थानों पर हर मंगलवार को राम दरबार की पूजा होती है।
सोमवती अमावस्या: इस अमावस्या को सावन कृष्ण पक्ष, सोमवार को पड़ने पर और अधिक महत्त्व प्राप्त होता है।
कांवड़ यात्रा
कांवड़ यात्रा एक प्रमुख हिन्दू धार्मिक यात्रा है, जो सावन माह में श्रद्धालुओं द्वारा भगवान शिव की आराधना हेतु की जाती है। इस यात्रा में श्रद्धालु, जिन्हें “कांवड़िए” कहा जाता है, पवित्र नदियों – विशेष रूप से गंगा नदी – से जल भरकर पैदल चलते हुए अपने क्षेत्र के शिव मंदिरों तक पहुँचते हैं और वहाँ शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं।
यह यात्रा विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड और हरियाणा में अधिक लोकप्रिय है। हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री और सुल्तानगंज जैसे तीर्थ स्थलों से जल भरकर भक्त अपने गंतव्य की ओर निकलते हैं। यह यात्रा श्रद्धा, संयम और तपस्या का प्रतीक मानी जाती है।
कांवड़िए पूरे रास्ते भजन-कीर्तन करते हैं, “बोल बम” के जयकारे लगाते हैं और अक्सर नंगे पाँव चलते हैं। कई स्थानों पर कांवड़ यात्रियों के लिए विशेष सेवा शिविर लगाए जाते हैं, जहाँ भोजन, दवाई और आराम की सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं।
कांवड़ यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह लोगों में अनुशासन, समर्पण और सामाजिक सहयोग की भावना को भी बढ़ावा देती है। यह यात्रा भक्ति और ऊर्जा का अद्भुत संगम है।
विशेष भजनों और संध्या आरतियों की प्रथा
बड़ी संख्या में शिव भक्त भजन संध्या करते हैं।
ग्रुप भजन, झूले की आरती और मंदिरों में विशेष शिव मंत्रों का पाठ होता है।
हर खास सोमवार को रातभर जागरण संपन्न होता है।
सांस्कृतिक महोत्सव—झूला, गीत, नृत्य
सावन में झूला झूलने की परंपरा का गहरा सांस्कृतिक महत्व है।
झूले पर झूलती महफिलें, पारंपरिक गीत–“सावना झूलेला” आदि लोक-संगीत बहुत प्रसिद्ध हैं।
सावन (Sawan) (दिन, तिथियाँ और विशेष आयोजन)
दिनांक (2025) वार तिथि (हिंदू) प्रमुख आयोजन / पर्व 11 जुलाई शुक्रवार श्रावण मास प्रारंभ सावन माह का पहला दिन, शिव पूजन आरंभ 14 जुलाई सोमवार श्रावण शुक्ल चतुर्थी पहला सावन सोमवार, श्री शिव अभिषेक, व्रत 15 जुलाई मंगलवार शुक्ल पंचमी मंगल गौरी व्रत 17 जुलाई गुरुवार शुक्ल सप्तमी शिव मंत्र जाप, रुद्राभिषेक 21 जुलाई सोमवार शुक्ल एकादशी दूसरा सावन सोमवार, कांटिका एकादशी व्रत 22 जुलाई मंगलवार शुक्ल द्वादशी दूसरा मंगल गौरी व्रत 23 जुलाई बुधवार त्रयोदशी / चतुर्दशी श्रावण शिवरात्रि (निशीथ काल पूजन) 24 जुलाई गुरुवार अमावस्या हरियाली अमावस्या, वृक्षारोपण, सुहाग सामग्री दान 27 जुलाई रविवार शुक्ल तृतीया हरियाली तीज, सुहागिनों का पर्व 28 जुलाई सोमवार शुक्ल चतुर्थी तीसरा सावन सोमवार, विशेष शिव पूजन 29 जुलाई मंगलवार शुक्ल पंचमी नाग पंचमी, तीसरा मंगल गौरी व्रत 4 अगस्त सोमवार दशमी चौथा सावन सोमवार, पुत्रदा एकादशी की तैयारी 5 अगस्त मंगलवार एकादशी पुत्रदा एकादशी, चौथा मंगल गौरी व्रत 6 अगस्त बुधवार द्वादशी प्रदोष व्रत (सांयकालीन शिव आराधना) 9 अगस्त शनिवार पूर्णिमा रक्षा बंधन, सावन समाप्ति, विशेष स्नान‑दान

सावन (Sawan) मास के धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक पहलू
भक्ति और तप
सावन मास शिवभक्ति के लिए अति श्रेष्ठ माना जाता है।
इस मास में साधना, उपवास और तप अधिकांश भक्तों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाती है।
कृषि-किसानी में लाभकारी
मानसून की बारिश के कारण खेतों और फसलों को जीवनदायिनी ऊर्जा मिलती है।
किसान फसल जलपान पर ध्यान देते हैं—इस कारण सावन कृषि-परिचालन के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण है।
सामाजिक सामंजस्य और मेलजोल
झूला झूलना ग्रामोद्योंग और सामाजिक मेलजोल का अवसर होता है।
भजन, कीर्तन, भोजन और आरती में संलिप्त होकर लोग झूले की महिमा में रमते हैं।
स्वास्थ्य लाभ
मानसून की ठंडक और नमी त्वचा व श्वास विकारों में राहत देती है।
सावन के मौसम में उमस और चिपचिपाहट कम होती है, जिससे रोग कम होते हैं।
सावन में लोक-परंपराएं
मेवाड़, राजस्थान में झूला पर खास झांकियां सजती हैं—हर गाँव में सावन मेलों का आयोजन।
बिहार, झारखंड में सावन मंगल भजन की प्रथा है—लोग शाम को मिलकर भजन-कीर्तन करते हैं।
उत्तर भारत में सावन की लट्टुओं का रिवाज, और सावन मनाने वाली झुरमुट पंचायतों का आयोजन सामाजिक सदभावना बढ़ाता है।
सावन (Sawan) : आध्यात्मिक संदेश
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मेवाड़, राजस्थान में झूला पर खास झांकियां सजती हैं—हर गाँव में सावन मेलों का आयोजन।
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बिहार, झारखंड में सावन मंगल भजन की प्रथा है—लोग शाम को मिलकर भजन-कीर्तन करते हैं।
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मन की शुद्धता—सावन मास में शिवपूजन से आचरण व विचारों में पवित्रता आती है।
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तपस्या और साधना—व्रत-ब्रत, दर्शन और जागरण आत्मा को अनुशासित करते हैं।
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प्रकृति के प्रति प्रेम—बरसात के समृद्ध वरदान को स्वीकारना और उसका सम्मान।
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समाज में एकता—सावन के मेलों और पूजा में सब शामिल होते हैं—धर्म, जाति, आर्थिक
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निष्कर्ष
तारीखें: 11 जुलाई 2025 से 09 अगस्त 2025 (आवधिक रूप से)—
विशेषता: शिव पूजन, सावन सोमवार व्रत, झूला, कांवड़, रुद्राभिषेक, सोमवती अमावस्या।
सांस्कृतिक-मिलन: झूला, संगीत, मानसून-उल्लास।
कृषि व स्वास्थ्य: बरसात, खेतों की हरियाली व स्वास्थ्य में सुधार।